गोत्र

संथाल समाज में बारह गोत्र होते है.
एक गोत्र के लोगों का आपस में विवाह पूर्णतया वर्जित है. इसे किसी भी रूप में स्वीकारा नहीं जाता और दण्डनीय है आपस में सामाजिक विवाह में वर्जित गगोत्र
१ टुडू - बेसरा
२ किस्कू - मार्डी
३ चोड़े - बेसरा
इस तरह के बहुत से गोत्र एक दूसरे गोत्र से भी सामाजिक विवाह का संबंध नहीं करते है. वे दूसरे गोत्र को भी समान गोत्र मानते है.
'संथाल' समाज में पुरातन समय से प्रचलित नाम चले आया है जो उसी वंश में लगातार चलते आ रहे है. इन नामों से ही गोत्र के बिना भी पहचान हो जाती है कि आमुक व्यक्ति संथाल जाति का ही है. अमूमन तीन अश्छरों का नाम प्रचलित होता है. जैसे पुरूषों के नाम मुख्यत: इस प्रकार होते है:-
मंगल, पोराण, सागेन, बुधू
महिलाओं के प्रचलित नाम:- बाहामुनी, सोनामुनी, पौरायणी
इन छोटे नामों के प्रचलन का सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व है, एक  तो उच्चारण या पुकारने में आसानी होती है. परिवार के किसी भी पूजा-पाठ में उस परिवार के उस वंश के सारे पुरखों का नाम लिया  जाता है. इससे नाम लेने में, नाम याद रखने में आसानी होती है.
जनजातीय सामाजिक संगठन का गोत्र एक महत्त्वपूर्ण आधार है. गोत्र  को कई  वंशों का समूह कहा जाता है जो माता या पिता  किसी एक पक्ष के समस्त  रक्त संबंधियों से मिलकर बनता  है. संथाल जनजाति में पितृवंशीय गोत्र पाया  जाता है.
गोत्र:

  1. हॉंसदा
  2. मुर्मू
  3. किस्कू
  4. हेंम्ब्रम
  5. मार्डी
  6. सोरेन
  7. टुडू
  8. बेसरा
  9. बास्की
  10. पोड़िया
  11. चोंड़े
  12. बेदिया
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