औजार

'संथाल' समुदाय हमेशा से जंगलों पहाड़ों पर रहता आया है और इसकी सुरक्षा करता आ रहा है. जंगलों पहाड़ों पर रहना विचरना इस समुदाय का सदा से लगाव रहा है. अस्त्र-शस्त्रों की सहायता से ' संथाल' समुदाय जंगलों में दुश्मनों से अपनी सुरक्षा करता आया है, साथ ही जंगलों में अपने इच्छित खाने-पीने की वस्तुओं को प्राप्त करने में भी इसका उपयोग करता रहा है. धीरे-धीरे इसके ये अस्त्र-शस्त्र इनके छाया की तरह  रहते-रहते धर्म-संस्कृति के अंग बन गये. इसमें सबसे प्रमुख तीर -धनुष को माना जा सकता है. तीर-धनुष 'संथाल' समुदाय का महत्त्वपूर्ण अस्त्र है, इसे घर में रखना अनिवार्य है. इसकी आवश्यकता सुरक्षा की दृष्टिकोण में तो है ही, सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व भी है. इसका प्रयोग 'संथाल' जाति में जन्म से लेकर मृत्यु तक के विभिन्न पूजा अनुष्ठानों में होता है. इसके अलावा फारसा, भाला, बरछा भी आवश्यक रूप से ही रखा जाता है. इसका भी विभिन्न सामाजिक पूजा अनुष्ठानों में प्रयोग किया जाता है. कुदाल, गैंता, सब्बल, कुल्हाड़ी, खुरपी आदि तो दिनचर्या के कामों में आने वाली वस्तुएँ है. चूँकि 'संथाल' जाति के 90% लोग खेती पर ही आश्रित है. इसलिए कृषि के विभिन्न कार्यों में आने वाले  इन वस्तुओं को भी आवश्यक रूप से रखना पड़ता है.
चाला :- यह बाँस से बनी एक प्रकार की छलनी होती है जिसका आकार शंकु की तरह होता है. उपरी भाग खुला होता है और निचला भाग नुकीला होता है. मध्यम भाग से नुकीले भाग तक इसमें छोटे-छोटे छेद होते है 'संथाल' जनजाति के लिए यह बहुत उपयोगी वस्तु है क्योंकि इससे ही ये अपना प्रमुख पेय पदार्थ हंडी ( हंड़िया) बनाते है.

बांदी :- यह पुआल से बनी मोटी-मोटी रस्सियों की बहुत  बड़ी टोकरी होती है. इसमें बड़ी मात्रा में धान को एक लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है.  
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