पूजा स्थल
'संथाल' समुदाय में प्रत्येक गाँव का अपना-अपना ग्राम देवता 'मारांग बुरू' होता है. जिसका निवास गाँव से हटकर पवित्र साल के वृछों के नीचे होता है. इस स्थान को देव निवास स्थान 'जाहेर थान/सरना स्थल' की संज्ञा दी गई है. इस स्थान के वृछों को काटना सामाजिक एवं धार्मिक रूप से वर्जित होता है. इस स्थान पर गन्दी वस्तुओं को फेकना, मल-मूत्र त्यागना वर्जित होता है. यह स्थान 'संथाल' समाज के लोगो के लिए मंदिर, मस्जिद, चर्च या गुरूद्वारे के समान ही होता है. इसकी मान्यता भी उसी प्रकार होती है.
'संथाल' समाज के लोगों में यह विश्वास है कि 'जाहेर आयो' के नाखुश होने पर गाँव में बीमारी , प्राकृतिक आपदा होने की संभावना होती है.
गाँव में लोग सारे पर्व त्योहारों में इसे पूजते है. प्रत्येक वर्ष बाहा पर्व के अवसर पर ग्राम पुजारी 'नाइके' काफी नियम-धरम तथा उपवास के साथ ग्राम देवता को पूजता है. पूजा के समय गाँव के सभी लोग बच्चे, बूढ़े जवान उस स्थान पर एकत्रित होते है. ग्राम पुजारी गाँव के लोगों की सुरछा, मुर्गी, बत्तख, गाय, बैल, भेड़, बकरियों आदि मवेशियों की सुरछा और बीमारियों से रछा, अच्छी खेती-पैदावार के लिए ग्राम देवता को पूजते है.
'संथाल' समुदाय के लोगों का यह भी मानना है कि दैवी-दैवताओं का वास जंगलों-पहाड़ों, नदी-नालों तथा पोखरों में होता है. इसलिए ' संथाल समुदाय के लोग जंगलों के निकट नदी-नालों के किनारे बसना ज्यादा पसंद करते हैं.
'संथाल' समाज के लोगों में यह विश्वास है कि 'जाहेर आयो' के नाखुश होने पर गाँव में बीमारी , प्राकृतिक आपदा होने की संभावना होती है.
गाँव में लोग सारे पर्व त्योहारों में इसे पूजते है. प्रत्येक वर्ष बाहा पर्व के अवसर पर ग्राम पुजारी 'नाइके' काफी नियम-धरम तथा उपवास के साथ ग्राम देवता को पूजता है. पूजा के समय गाँव के सभी लोग बच्चे, बूढ़े जवान उस स्थान पर एकत्रित होते है. ग्राम पुजारी गाँव के लोगों की सुरछा, मुर्गी, बत्तख, गाय, बैल, भेड़, बकरियों आदि मवेशियों की सुरछा और बीमारियों से रछा, अच्छी खेती-पैदावार के लिए ग्राम देवता को पूजते है.
'संथाल' समुदाय के लोगों का यह भी मानना है कि दैवी-दैवताओं का वास जंगलों-पहाड़ों, नदी-नालों तथा पोखरों में होता है. इसलिए ' संथाल समुदाय के लोग जंगलों के निकट नदी-नालों के किनारे बसना ज्यादा पसंद करते हैं.