संथाल जनजाति
"संथाल" एक आदिवासी समुदाय है, 'संथाल' समुदाय झारखंड राज्य के संथाल परगना , सिंहभूम जिले, मानभूम जिले व पड़ोसी राज्य ओडिसा के मयूरभंज जिलों में बसी हुई है. इन इलाकों में कब से बसी हुई है यह ठीक-ठीक कहना कठिन है पर हो , महले तथा मुण्डा समुदाय स्वतंत्र रूप से इस ईलाकों के निवासी है.
संथाल समुदाय की अपनी संस्कृति है अपना रीति-रिवाज है. इनकी धार्मिक मान्यता कुछ अलग है. ये प्रकृति के उपासक होते है. इनके अपने-अपने गोत्र के कुल देवता होते है.संथाल समुदाय के लोग अपने ग्राम देवता मारांग बुरू व जाहेर एरा को सर्वेसर्वा मानते है. अन्य अवसर के अलावा प्रति वर्ष बाहा परब के अवसर पर मुर्गे की बली चढ़ा कर ग्राम पुजारी 'नाइके' के द्वारा इसकी पूजा पाठ की जाती है तथा गाँव के सभी लोग पूजा स्थल पर एकत्रित हो कर ग्राम देवता से आशिर्वाद प्राप्त करते है.
संथाल समुदाय के महान स्वतंत्र सैनानी सिद्धू-कान्हू अपने इलाकों में विदेशियों-दुश्मनों की या बाहरी लोगों की घुसपैठ इन्हें कभी भी पसंद नहीं रहा.
संथाल समुदाय की अपनी अलग भाषा है जिसे 'संथाली भाषा' के नाम से जाना जाता है. यही इसकी मातृभाषा भी है. इनकी अपनी लिपि -ओलचिकि है जो काफी प्रचलित है. संथाल जाति के लोगों की सभी बातों में समानता पाई जाती है.
इनका घर बनाने का तरीका, घरों की रूपरेखा में भी एक पहचान होती है.
इनका पहनावा चाल-ढाल इत्यादि में भी एकरूपता पाई जाती है. यह साफ-सुथरा रहना पसंद करते है. घरों को तथा घर के आसपास को भी साफ-सुथरा रखते हैं.
इनका पेय पदार्थ हंड़िया 'चावले हंडी या बोडोज़' होता है. ये चावल खाना पसंद करते है. मांस-मछली इत्यादि भी शिकार कर चाव से खाते है. इनका स्वास्थ्य हट्टा-कट्टा सुदृढ़ होता है. इस समुदाय के लोगों की औसत आयु 70 होती है. चूँकि 'संथाल' समुदाय के लोग वीर बहादुर एवं लड़ाकू योद्धाओं के रूप में भी पहचान रखते थे अत
अत: इन्हे 'खेरवाल वीर' के रूप में भी जाना जाता है
संथाल समुदाय की अपनी संस्कृति है अपना रीति-रिवाज है. इनकी धार्मिक मान्यता कुछ अलग है. ये प्रकृति के उपासक होते है. इनके अपने-अपने गोत्र के कुल देवता होते है.संथाल समुदाय के लोग अपने ग्राम देवता मारांग बुरू व जाहेर एरा को सर्वेसर्वा मानते है. अन्य अवसर के अलावा प्रति वर्ष बाहा परब के अवसर पर मुर्गे की बली चढ़ा कर ग्राम पुजारी 'नाइके' के द्वारा इसकी पूजा पाठ की जाती है तथा गाँव के सभी लोग पूजा स्थल पर एकत्रित हो कर ग्राम देवता से आशिर्वाद प्राप्त करते है.
संथाल समुदाय के महान स्वतंत्र सैनानी सिद्धू-कान्हू अपने इलाकों में विदेशियों-दुश्मनों की या बाहरी लोगों की घुसपैठ इन्हें कभी भी पसंद नहीं रहा.
संथाल समुदाय की अपनी अलग भाषा है जिसे 'संथाली भाषा' के नाम से जाना जाता है. यही इसकी मातृभाषा भी है. इनकी अपनी लिपि -ओलचिकि है जो काफी प्रचलित है. संथाल जाति के लोगों की सभी बातों में समानता पाई जाती है.
इनका घर बनाने का तरीका, घरों की रूपरेखा में भी एक पहचान होती है.
इनका पहनावा चाल-ढाल इत्यादि में भी एकरूपता पाई जाती है. यह साफ-सुथरा रहना पसंद करते है. घरों को तथा घर के आसपास को भी साफ-सुथरा रखते हैं.
इनका पेय पदार्थ हंड़िया 'चावले हंडी या बोडोज़' होता है. ये चावल खाना पसंद करते है. मांस-मछली इत्यादि भी शिकार कर चाव से खाते है. इनका स्वास्थ्य हट्टा-कट्टा सुदृढ़ होता है. इस समुदाय के लोगों की औसत आयु 70 होती है. चूँकि 'संथाल' समुदाय के लोग वीर बहादुर एवं लड़ाकू योद्धाओं के रूप में भी पहचान रखते थे अत
अत: इन्हे 'खेरवाल वीर' के रूप में भी जाना जाता है