निवास

संथाल समाज के लोग गाँवों में बसते है . ये गाँव प्राय: जंगलों, पहाड़ों, नदी-नालों के किनारे होता है. एक गाँव में प्राय: एक ही गोत्र के लोगो का समुह या निवास होता है. धीरे-धीरे अन्य गोत्र के लोग भी किन्हीं कारणों से प्रश्रय मिलने से एक गाँव में ही बसने लगे.
इसके अलावे प्रत्येक गाँव में गाय, बैल, भेड़, बकरी, मुर्गी, सुअर आदि की देखभाल के लिए एक दो गोप परिवार, कपड़े बुनने के लिए बुनकर परिवार (तांती), लोहे के औजार बनानेे तथा मरम्मत के लिए लोहार ( कमार ) परिवार,एवं मिट्टी के बर्तन बनाने हेतु कुम्हार परिवार हुआ करता है. एक गाँव के लोगों में आर्थिक असमानता होते हुए भी आपस में प्रेम , भाईचारा की भावना होती है, ऊँच-नीच, जात-पात की भावना नहीं होती है; एक दूसरे को आपसी रिश्तों जैसे काका-काकी, आदि से संबोधित किया जाता है. किसी भी परिवार या गोत्र की महिला को अपने घर की ही महिलाओं सा आदर सम्मान देते है.

बुजुर्गों का रिश्तों के आधार पर संबोधन एवं सम्मान होता हैै, एक गाँव में आपस में प्राय: शादी-विवाह नहीं होता है. गाँव पूरी तरह से सहयोग पर आधारित होता है. सभी कार्यों में लोग एक दुसरे को सहयोग करते है. घर बनाने , मरम्मत करने , खेती के कार्यों में , जन्म-मृत्यु , शादी-विवाह सभी बिना मजदूरी के सहयोग के बदले सहयोग की परिपाटी पर एक दुसरे को मदद करते है. इसमें अमीरी गरीबी की कोई सीमा रेखा नहीं होती है.

गाँव में एक मुखिया होता है जो गाँव के लोगों के द्वारा चुना जाता है. वह बुद्धिमान तथा ईमानदार व्यक्ति होता है. गाँव में किसी भी प्रकार की आपसी विवादों का निपटारा यही व्यक्ति करता है. बाद में अंग्रेजों के समय से इसे ' मांझी' की संज्ञा दी गई और यह पद अनुवांशिक होते हुए भी यह पद व्यक्ति के अयोग्य पाए जाने पर किसी और को दिया जा सकता है. मांझी गाँव के अन्य बुजुर्गों से सलाह-मशवरे करने के बाद ही कार्य करता है. मांझी की मदद के लिए गाँव में एक डकुवा( जोगमांझी ) भी होता है. डकुवा गाँव में घूमते हुए मांझी की सभाओं की जानकारी दिया करता है.

Blogger द्वारा संचालित.